आज हमारा राष्ट्र एक गंभीर संकट से गुजर रहा है। देश के गरीबों,पिछड़ों, दलितों, किसानों और नौजवानों की दशा बेहद खराब होती जा रही है। शिक्षा महंगी और दुर्लभ होती जा रही है। इलाज बहुत महंगा हो गया है। सरकारें जानबूझकर इन बुनियादी समस्याओं के प्रति ऑंखें मूंदे हुए हैं,जबकि सभी नागरिकों के लिए मुफ्त और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा-स्वास्थ्य की उपलब्धता सुनिश्चित करना सरकारों का मौलिक दायित्व है और बिना इस बुनियादी व्यवस्था के कोई भी आम नागरिक आगे नहीं बढ़ सकता।आरक्षण धीरे-धीरे बिना कहे समाप्त किया जा रहा है।हर क्षेत्र में निजीकरण के कारण सरकारी विभागों में नौकरियां समाप्त हो रही हैं।उद्योग और व्यवसाय बंद हो रहे हैं।रोजगार के अवसर के लिए न व्यवसायिक, औद्योगिक और तकनीकी शिक्षा की उचित, गुणवत्तापूर्ण और मुफ्त व्यवस्था है और न ही ज्ञान और पूंजी के अभाव में आज का नौजवान खुद कोई रोजगार करने की स्थिति में है।
शोषित समाज की लगभग 95% आबादी गांवों में रहती है। गांव की हालत बेहद खराब है।किसान की आमदनी बहुत ही कम होती जा रही है और दिन प्रतिदिन उनकी जोत बहुत ही कम होती जा रही है और ऐसा लगता है कि कुछ दिनों में कुछ क्षेत्रों में मात्र घर बनाने के लिए ही भूमिउपलब्ध हो पाएगी। कृषि क्षेत्र में लागत बढ़ रही है। किसान की औसत आमदनी सालाना 10000रूपए से अधिक नहीं है। इन्हीं शोषित समाज के 95% से अधिक लोग शहरों में गंदी बस्तियों, झुग्गी झोपड़ी में रहते हैं,जहां शिक्षा,स्वास्थ्य,बिजली,पानी, शांति व्यवस्था, स्वच्छ पर्यावरण और स्वच्छ वातावरण जैसी बुनियादी सुविधाओं का भी अभाव है।एक ओर गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी और लाचारी बढ़ रही है, तो दूसरी ओर सत्ता में बैठे लोग जनता की गाढ़ी कमाई से बनाए गए सरकारी महकमों को पूंजीपतियों के हाथ कौड़ियों के भाव लुटा रहे हैं, सरकारी संस्थाओं को बेच रहे हैं। इसनिजीकरण के कारण आरक्षण समाप्त हो रहा है और सारी नौकरियां संविदा और आउटसोर्सिंग से भरी जा रही हैं, जिसके कारण व्यापक मनुवाद,भ्रष्टाचार और शोषण पनप रहा है और आरक्षण भी समाप्त हो रहा है।बेरोजगारों,किसानों, छोटे व्यापारियों और उद्यमियों तथा शिल्पकारों के लिए छोटी पूंजी भी बैंक से उपलब्ध नहीं हो पा रही है और बड़े उद्यमियों और पूंजीपतियों को लाखों करोड़ बैंक से उधार दिए जा रहे हैं और सभी बैंकों में इस प्रकार से ऊटपटांग नियम बना दिए गए हैं कि आम जनता के खाते से हर ट्रांजैक्शन का धन कट रहा है।कुछ पूंजीपति तो देश की पूंजी लेकर विदेश भागगये।एक तरफ सत्तासीन दल का यह हाल है तो दूसरी तरफ पिछड़ों-दलितों में से जो भी सत्ता में आए,अपनी-अपनी पार्टी के मालिक होने के कारण बिना किसी रोक-टोक लूट किए। बुनियादी मुद्दों जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य,किसान, बेरोजगार, नौजवान, छात्रों और छोटे व्यवसायियों और उद्यमियों के हित में कार्य नहीं किए। यहां एक परिवार का दबदबा रहा और किसी की हिम्मत नहीं हुई कि उनके निर्णय का विरोध कर सके। यहां पार्टी का संगठन और सामूहिक निर्णय प्रमुख नहीं,व्यक्तिका निर्णय प्रधान रहा और इन दलों का मुखिया सत्ता में आने पर खैरात बांटकर, लोकलुभावन कार्य करकेया कुछ भावनात्मक निर्माण और नाम परिवर्तन करके महान और लोकप्रिय होने का ढोंग करता रहा।
एक तरफ आम जनता की हालात हर तरह से बद से बदतर हो रही है और दूसरी ओर देश और प्रदेश में सिर्फ व्यर्थ के मुद्देगढ़े जा रहे हैं। सत्तारूढ़ पार्टी और पूरा तंत्र तथा टीवी-मीडिया, आदि सभी चंद शब्दों तक देश के विमर्श को सीमित कर दिए हैं।ये शब्द हैं:-हिंदू, मुस्लिम,गाय,आतंकवाद, पाकिस्तान,राष्ट्रवाद, आदि| ये कुछ ऐसे शब्द हैं,जिनके इर्द-गिर्द रात-दिन पूरा विमर्श जारी है।जबकि जनता की जो बुनियादी समस्याएं हैं, जैसे उनकी शिक्षा, रोजगार, घोर गरीबी,उनकी बीमारी, सामाजिक ताना-बाना टूटना, आपस में मनमुटाव,नफरत औरबढ़ती दूरियां,दिन पर दिन बढ़ती शांति व्यवस्था की समस्या, बढ़ते सामंतवाद और मनुवाद, समाप्त होते आरक्षण, सरकारी संस्थाओं की बिक्री,निजीकरण और देश में चंद अनैतिक पूंजीपतियों को आगे बढ़ाने, जैसे तमाम जरूरी और बुनियादी मुद्दों पर कोई भी विमर्श नहीं होता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की मनुवादी और वर्णवादी सोच और विचारधारा राष्ट्रवाद और भारतीय परंपरा तथा संस्कृति के नाम पर पूरे देश में थोपी जा रही है।
यह राष्ट्र हिंदू,मुस्लिम,सूफीसंत,सिख,ईसाई, बौद्ध,जैन,पारसी,बहाई, आस्तिक, नास्तिक,कबीरपंथी, रैदासीऔर तमाम विचारधाराओं,दृष्टि और सोच से मिलकर बना है। एक धर्म,एक परंपरा, एक संस्कृति एवं एक महापुरुष का यह देश नहीं है।यह एक से नहीं,सब से मिलकर बना है।यही भारतीय संस्कृति है और यही भारतीय राष्ट्रवाद है और यही भारतीयता है और यही भारत माता है।एकांगी सोच भारतीय राष्ट्र, समाज और भारतीयता के लिए आज सबसे बड़ा खतरा बनता जा रहा है।संवैधानिक संस्थाओं को भी नष्ट और प्रभावहीन बनाकर विरोधियों के विरुद्ध दमन और उत्पीड़न के माध्यम के रूप में सीबीआई, इनकम टैक्स, ईडी और एनआईए जैसी तमाम संस्थाओं का उपयोग किया जा रहा है।
ऐसे हालात में जरूरी है कि इस स्थिति में परिवर्तन हो:
हो गयीहै पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए,
फिर हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए,
मेरे सीने में नहीं,तो तेरे सीने में सही,
है कहीं गर आग तो फिर आग जलनी चाहिए।
ऐसी स्थिति में गरीबों,मजदूरों,शोषितों व किसानों की स्थिति में सुधार, बिना उनके सत्ता में आए संभव नहीं है। सबसे बढ़कर,इन लोगों के हित के लिए जो भी सियासी दल बने,वह सभी आज एक जाति, एक परिवार, एक वंश और एक व्यक्ति तक सीमित हो गए हैं। यह देश विविधताओं का देश है।इसमें सबसे समस्या ग्रस्त लोग अतिपिछड़े,अतिदलित,पसमांदा और आदिवासी समाज के लोग हैं। आज इस देश में इन लोगों के बीच में कोई ऐसी पार्टी नहीं है,जिसमें उनके सभी समाज के लोगों को पार्टी में नेतृत्व करने का अवसर मिल सके। उत्तर भारत में पिछड़े वर्गों की लामबंदी समाजवाद के नाम पर की गई। उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज के नाम पर बहुजन समाज यानी 90% की गोलबंदी के लिए एक पार्टी का निर्माण किया गया।इसी प्रकार से बिहार में सामाजिक न्याय के नाम पर पिछड़ों को गोलबंद करने के लिए बिहारमें पार्टी बनी और शुरुआत में ऐसा लगा कि 90% लोगों के बीच बनने वाली पार्टियों में सभी लोगों को भागीदारी मिलेगी और समान अवसर मिलेगा, लेकिन ये पार्टियां एक जाति, एक परिवार और एक व्यक्ति की पार्टियां बनकर रह गईं।बड़े नारे और नाम सिर्फ पार्टी का मुखौटा ही सिद्ध हुए।इन पार्टियों में अपना प्रभुत्व कायम करने वाले लोगों का असली चेहरा घोर जातिवादी, परिवारवादी और वंशवादी, व्यक्तिवादी और तानाशाही के रूप में सामने आया।इसका परिणाम हुआ कि 90% लोगों में से कोई भी व्यापक आधार की पार्टी नहीं निर्मित हो पाई। थोड़े समय तक तो इन पार्टियों का जादू चला और लगा कि यह सब को जोड़ेंगे,किंतु किसी भी पार्टी में प्रत्येक पद पर,यहां तक कि राष्ट्रीय अध्यक्ष का भी कार्यकाल निर्धारित न होने के कारण,यहां एक ही व्यक्ति आजीवन राष्ट्रीय अध्यक्ष हो गया और फिर उसके परिवार का उत्तराधिकारी हो गया।इन कारणों से शीघ्र ही समाजवाद,सामाजिक न्याय और बहुजनवाद तथा दक्षिण में द्रविड़ आंदोलन के नाम पर या महाराष्ट्र में बाबासाहब के नाम पर या हरियाणा में चौधरी चरण सिंह के नाम पर चलने वाले तमाम दलों की असलियत सामने आ गयी। इनकी जातिवादी और वंशवादी असलियत पता चलने पर इनका एक राज्य के बाहर विकास नहीं हो पाया। इनका वहीं विकास हुआ,जहां इनकी जाति के लोगों की बहुलता थी। मात्र एक जाति को बढ़ावा देने से अन्य जातिके समाजों में असंतोष और इनके प्रति विरोध का भाव उत्पन्न हुआ।परिणाम यह हुआ कि विभिन्न समाजों की पार्टी बनने लगीं और यह भी उसी बीमारी की शिकार हो गईं। इन्होंने भी स्थापित जातिवादी-वंशवादी दलों की नकल करके अपनी जाति के कल्याण का नारा देकर एक जाति और एक परिवार एवं एक व्यक्तिकी पार्टी बना दी और एक जाति की पार्टी में भी एक कोई बहुत ही महत्वाकांक्षीतेज किस्म के व्यक्तिने अपने नेतृत्व का दावा किया और यह तेज व्यक्ति आगे चलकर इस पार्टी को जातिवादी पार्टी भी नहीं, बल्कि उसे अपनी निजी जागीर बना दिया,अपने परिवार की पार्टी बना दी। इस प्रकारसभी पार्टियां जातिवाद,परिवारवाद और वंशवाद की शिकार हो गईं।इन हालात में लगभग ढाई हजार दलों का पूरे देश में निर्माण हो गया। इनमें से एक-दोपार्टी को छोड़कर ज्यादातरपार्टियां शोषित समाज की विभिन्न जातियों के बीच में से एक जाति को लेकर बनी हैं। इनमें कभी भी नेतृत्व परिवर्तन नहीं होता।एक ही जाति और परिवार का व्यक्ति मालिक होता है। ये दल एक व्यक्ति की प्राइवेट प्रॉपर्टी हैं। जातिवादी और परिवारवादी दलों में बाकी जातियों और व्यक्तियों की स्थिति सिर्फ कारिंदे और नौकर की है।इनमें से कोई दल सरकार बनाता भी है,तो इनके मुख्यमंत्री के ऊपर किसी का कोई दबाव नहीं रहता, न हीवह किसी के प्रति जवाबदेह होता है।कहने को तो वह विधायक दल का चुना हुआ नेता है,किंतु उसकी पार्टी में सभी राजनीतिक प्रतिनिधियों और कार्यकर्ताओं की स्थिति ऐसी है कि उसके निर्णय का कोई विरोध नहीं कर सकता। वह अपने निजी स्वार्थ,लूट और भ्रष्टाचार में लग जाता है। बुनियादी परिवर्तन का नारा खोखला सिद्ध होता है।
इन हालात में जरूरी है कि ऐसे लोगों की कोई लोकतांत्रिक पार्टी हो, जिसमें सभी समाज के लोगों की भागीदारी हो। सभी अतिपिछड़े,अतिदलित, पसमांदा और आदिवासी समाज के लोगों की भागीदारी हो।पार्टी का नेतृत्व एक जाति और एक परिवार में न होकर विभिन्न वर्गों और समाजों में बदलता रहे।90% का बहुत बड़ा समाज है,विविध समाज है और सबकी भागीदारी आवश्यक है। सभी पिछड़े,दलित,आदिवासी, पसमांदा, किसान,मजदूर और नौजवान की बात करते हैं,किंतु सही मायने में कोई भी पार्टी इन सभी को भागीदारी नहीं देना चाहती और न कहीं भागीदारी है।यही कारण है कि देश स्तर पर 90% लोगों की किसी भी व्यापक पार्टी का विकास नहीं हो पा रहा है।इसी कमी को पूरा करने और व्यापक लोकतांत्रिक पार्टी बनाने का संकल्प लेकर सम्यक पार्टी का गठन किया गया है। इसमें पिछड़े,दलित, आदिवासी और पसमांदा के विभिन्न समाज के लोगों में हर स्तर पर नेतृत्व बदलता रहेगा और उनको नेतृत्व का अवसर मिलेगा और हर क्षेत्र में उनको भागीदारी मिलेगी।इसमें सभी को राष्ट्रीय अध्यक्ष, प्रदेश अध्यक्ष और जिलाध्यक्ष एवं विभिन्न पदों पर कार्य करने और पार्टी का प्रत्येक स्तर पर नेतृत्व करने का अवसर मिलेगा।यह पार्टी 90% लोगों की लोकतांत्रिक पार्टी के रूप में गठित की जा रही है,जिसमें पिछड़े,दलित, आदिवासी, पसमांदा और राजनीतिक रूप से वंचित समाज के लोगों को विशेष तवज्जो दी जाएगी।राजनीतिक रूप से वंचित जमात की पार्टी के रूप में इसे लोकतांत्रिक ढंग से विकसित करने का संकल्प किया गया है। सम्यक पार्टी की नीति वंचित जमात को राजनीतिक न्याय दिलाने के लिए उनके पक्ष में विशेष मजबूती और इरादे से खड़ा होना है। ऐसा करके पार्टी किसी के विरोध या विपक्ष में कार्य करने या खड़ी होने की पक्षधर नहीं है,बल्कि पार्टी सकारात्मक रूप से उनके पक्ष में खड़ी होगी,जो सामाजिक,आर्थिक और सियासी तौर पर बेहद सताए गए हैं। अब तक के दलों में उनको पर्याप्त भागीदारी नहीं मिली है और वे सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक इन तीनोंप्रकार के न्याय से वंचित रहे हैं।लोकतंत्र में राजनीति और सत्ता से वंचित समाज के लोगों द्वारा गोलबंदी लोकतंत्र की स्वाभाविक प्रक्रिया है।जब कुछ राजनीतिक दल तमाम समाज के लोगों को सामाजिक,आर्थिक और राजनीतिक न्याय से वंचित करने का जानबूझकर कुचक्र रचते हैं और षड़यंत्र करते हैं, तो वंचित जमात को नई गोलबंदी करनी पड़ती है और यह लोकतंत्र की स्वाभाविक प्रक्रिया है और यह लोकतंत्र के लिए अनिवार्य है। सम्यक पार्टी किसी जाति, किसी परिवार,किसी वंश या किसी व्यक्ति के विरुद्ध नहीं है,बल्किराजनीति में जातिवाद,परिवारवाद,वंशवाद और व्यक्तिवाद के विरुद्ध है, जिसके कारण शोषितों की कोई भी सर्वमान्य,सर्वसमावेशी,व्यापक और लोकतांत्रिक पार्टी नहीं विकसित हो पा रही है और इसी कारणशोषित सत्ता से दूर होते जा रहे हैं और उनका शोषण और उत्पीड़न दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है।
सम्यक पार्टी सियासी तौर पर वंचित जमात के अतिपिछड़ों,अतिदलितों, पसमांदा और आदिवासी समाज की नई राजनीतिक गोलबंदी कर उन्हें अपने अधिकार और भागीदारी दिलाने के लिए लड़ाई तेज करेगी।सम्यक पार्टी का नारा है:
न जातितंत्र,न वंशतंत्र,
सम्यक पार्टी,सम्यक लोकतंत्र
लोकतंत्र की राह दिखाती सम्यक पार्टी लोकतांत्रिक संगठन, सामूहिक निर्णय और सामूहिक नेतृत्व के प्रति आस्थावान एवं प्रतिबद्ध है।पार्टी जातिगत एवं परिवारगत और व्यक्तिगत प्रभुत्व के विरुद्ध है। सम्यक पार्टी अपना आदर्श किसी व्यक्ति,किसी परिवार और किसी जातिगत समूह को नहीं,वरन पार्टी के संविधान, संगठन और विचार को आदर्श मानती है।भारत की बहुलतावादी संस्कृति,सोच और जीवन मूल्यों को पोषित करने वाले तथा समता और मानवता की राह दिखाने वाले देश के सभी महापुरुष इस पार्टी के मार्गदर्शक महापुरुष हैं। सम्यक पार्टी राष्ट्र एवं समाज के निर्माण तथा सामाजिक सद्भाव,समरसता और सौहार्द के विचारों का अनुगमन करेगी औरपार्टी का लोकतांत्रिक एवं राजनीतिक नैतिकता एवं शिष्टाचार में अटूट विश्वास है।
सम्यक पार्टी का गठन व्यक्ति, समाज और राष्ट्र निर्माण और राजनीति में नैतिकता का उच्च मानक स्थापित करनेके लिए किया गया है। सम्यक पार्टी राजनीति को व्यवसायिकता और कमाई का साधन होने से बचाने के लिए संकल्पित है। सम्यक पार्टी राजनीति में सेवा और मिशन से कार्य करने वाले समर्पित कार्यकर्ताओं का एक समूह होगा, जिसमें वे लोग जुड़ेंगे, जिनका इस बात में पक्का यकीन है कि राजनीति समाज और राष्ट्र सेवा का एक बहुत बड़ा माध्यम है। यह व्यवसाय और कमाई का माध्यम नहीं है।अपने अपराध और भ्रष्टाचार को छिपाने का माध्यम नहीं है। राजनीतिक मूल्यों में आई गिरावट को देखते हुए सम्यक पार्टी के रूप में एक ऐसे राजनीतिक दल की स्थापना की गई है,जिसमें किसी एक जाति, एक परिवार और एक व्यक्ति के वर्चस्व की संभावना शून्य हो।लोकतांत्रिक मूल्य और विचारों को व्यवहारिक रूप से सम्यक पार्टी के संविधान में इस प्रकार सुनिश्चित किया गया है कि पार्टी का प्रत्येक सदस्य पार्टी के सभी पदों पर अपना अधिकतम योगदान दे सके।
सम्यक पार्टी भारत के संविधान की प्रस्तावना में वर्णित नीति, दर्शन, विचार और दृष्टि का अनुपालन करेगी तथा राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों को लागू करेगी। सम्यक पार्टी का यह दृढ़ यकीन है कि यह देश विविधता का देश है।यहां की आबादी भी बहुत है,विचार,संस्कृति, भाषा, धर्म,सोच, दृष्टि, दर्शन,आदि तमाम तरह की विविधता है और इस विविधता में संविधान की मंशा के अनुसार संघीय ढांचा ही काम करना चाहिए।सम्यक पार्टी संघीय ढांचे में यकीन करती है और इसका दृढ़ मत है कि केंद्र सरकार को राष्ट्र की रक्षा, विदेश,मुद्रा नीतिऔर वित्त को छोड़कर शेष मामलेमें अधिकारक्षेत्र राज्य सरकार को और जिला सरकार को होना चाहिए।जिला सरकार और राज्य सरकार के बीच भी स्पष्ट तौर पर विषय वस्तु का विभाजन होना चाहिए।
इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए सम्यक पार्टी के संविधान में निम्नलिखित प्रावधान किए गए हैं:
1-किसी भी पद का कार्यकाल मात्र 3 साल का होगा और कोई भी व्यक्ति पूरे जीवन काल में दो कार्यकाल से अधिक किसी पद पर पदारूढ़ नहीं हो सकता।
2-किसी भी पद पर किसी व्यक्ति का कार्यकाल समाप्त होने या इस्तीफा देने या हटाए जाने पर अगले एक कार्यकाल तक उस पद पर उस व्यक्ति के परिवार का कोई भी व्यक्ति उस पद पर निर्वाचन हेतु अर्हनहीं होगा।
3-किसी भी कार्यकारिणी में एक परिवार का सिर्फ एक ही व्यक्ति पदाधिकारी रह सकता है।
4-किसी एक परिवार में दो से अधिक व्यक्तियों का स्थानीय निकाय से लेकर संसद सदस्य के निर्वाचन हेतु नामांकन नहीं किया जा सकता।
5-सियासी तौर पर वंचित समाज के लोगों को पार्टी के संगठन में और टिकट वितरण में सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाएगी और सभी समाज के लोगों को और महिलाओं को उनके आबादी के अनुपात में टिकट वितरण का कार्य किया जाएगा।
पार्टी के सत्ता में आने पर:
1- एक ही जाति या व्यक्ति को सरकार के मुखिया के रूप में दोहराया नहीं जाएगा।
2-सभी के लिए गुणवत्तापूर्णनिशुल्क और समान शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं सुनिश्चित की जाएंगी। किसानों,सैनिकों, शिल्पकारों और मजदूरों के बच्चों की सभी प्रकार की उच्च शिक्षा का व्ययभार सरकार द्वारा वहन किया जाएगा।
3- सरकारी नौकरियों में भ्रष्टाचारमुक्त और पारदर्शी परीक्षाओं द्वारा भर्ती सुनिश्चित की जाएगी।
4-व्यापक एवं निशुल्क तथा गुणवत्तापूर्ण व्यवसायिक,तकनीकी एवं औद्योगिक शिक्षा की व्यवस्था एवं समुचित वित्तपोषण करके युवाओं को सम्मानजनक व्यवसाय और रोजगार से जोड़ा जाएगा।
5-किसानों के लिए समेकित समावेशी नीति अपनाई जाएगी और फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य का निर्धारण करते समय जमीन का न्यूनतम किराया सहित उनके सभी लागत मूल्यों को ध्यान में रखा जाएगा और स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को तत्काल लागू करते हुए किसानों के कल्याण के लिए एक अलग से राष्ट्रीय किसान आयोग बनाया जाएगा।
6-एक परिवार में न्यूनतम एक रोजगार, व्यवसाय,नौकरी या उद्योग की नीति अपनाकर सभी नौजवानों को यथा योग्यता रोजगार प्रदान किया जाएगा।
7- सभी धन संपत्ति पर अधिकतम सीमा की राष्ट्रीय नीति अपनाई जाएगी। जिस प्रकार से गरीबी रेखा का निर्धारण होता है,उसी प्रकार से अमीरी रेखा का भी निर्धारण किया जाएगा।सभी को बुनियादी जरूरतों का निर्धारण कर इसकी उपलब्धता सुनिश्चित की जाएगी और बुनियादी आवश्यकता का समय-समय पर निर्धारण के लिए तथा अमीरी रेखा के निर्धारण के लिए एक नीतिगत आयोग बनाया जाएगा।
8-पिछड़े वर्गों को उनकी आबादी के अनुपात में आरक्षण की नीति अपनाई जाएगी और आरक्षण में भी कर्पूरी ठाकुर फार्मूला अपनाकर सामाजिक न्याय के हित में उसका वर्गीकरण किया जाएगा।निजी क्षेत्र में तथा संविदा और आउटसोर्सिंग में हो रही भर्तियों में भी आरक्षण की नीति लागू की जाएगी।सभी उच्च न्यायिक पदों पर भी आरक्षण की राष्ट्रीय नीति लागू की जाएगी।
9-न्यायपालिका में कॉलेजियम सिस्टम समाप्त करके अखिल भारतीय न्यायिक परीक्षा द्वारा उच्च न्यायपालिका में जजों की तैनाती होगी और न्याय व्यवस्था में व्यापक परिवर्तन किया जाएगा।छोटे मामलों में स्थानीय तौर पर ही न्याय की उपलब्धता सुनिश्चित करने के स्थानीय तौर पर पंच न्याय प्रणाली स्थापित की जाएगी। सभी फौजदारी मुकदमों के निस्तारण की समय सीमा तय होगी।
10-देश में नफरत अलगाव संप्रदायिकता फैलाने वाले कट्टरपंथी संगठनों को प्रतिबंधित किया जाएगा और आपसी सद्भाव बढ़ाने वाले विचारों को प्रोत्साहित किया जाएगा। राष्ट्रीय सद्भावना आयोग का गठन इस हेतु किया जाएगा। भारतीय फिल्मों में भारतीय समाज की बहुलताका पूर्ण प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जाएगा।
11-सभी प्रकार के ठेके, पट्टे और खनन, आदि के पट्टे में आरक्षण के अनुसार विभिन्न वर्गों की भागीदारी सुनिश्चित की जायेगी।
12-ऐतिहासिक धरोहरों के ऊपर से निजी लोगों या कंपनियों का कब्जा समाप्त किया जाएगा और देश के इतिहास का सही उम्र लेखन किया जाएगा।
13-ग्राम स्वराज और ग्राम सरकार की सही अर्थों में स्थापना के लिए संकल्पबद्ध और क्रमबद्ध तरीके से काम किया जाएगा।शिक्षा, स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास,आदि की सभी योजनाओं की जिम्मेदारी और अधिकार ग्राम पंचायतों को पूरी तौर पर दिया जाएगा।इन्हें 73वें संविधान संशोधन की मंशा के अनुसार पूर्ण रूप से सक्षम और अधिकार संपन्न बनाया जायेगा और उन्हें उसी प्रकार से विकसित और आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर बनाया जाएगा,जिस प्रकार से केंद्र और प्रदेश की सरकारें हैं।
14-जिला पंचायतों को जिला सरकार के रूप में विकसित किया जाएगा और उन्हें कानून व्यवस्था, भू-राजस्व,भू-अभिलेख,बेसिक और माध्यमिक शिक्षा, कृषिएवं उद्योग, आदि स्थानीय महत्व के विषयों में पूर्ण एवं ऐकांतिक अधिकार प्रदान किए जाएंगे। जिला सरकार के आर्थिक स्रोत को भी अलग किया जाएगा।
15-प्रत्येक परिवार को एक असलहे का लाइसेंस प्रदान करने की नीति अपनाई जाएगी और जिन परिवारों में एक से अधिक असलहे हैं, उनमें सेएक को छोड़कर बाकी के लाइसेंस निरस्त करने की नीति अपनाई जाएगी।
16-भारतीय समाज में अंतरजातीय औरअंतरधार्मिक वैवाहिक संबंधों को प्रोत्साहित करने की विशेष योजना बनाई जाएगी और उसका क्रियान्वयन किया जाए।
संकल्प लोकतांत्रिक संगठन का।
लक्ष्य बुनियादी परिवर्तन का।
अतः आप सभी से अनुरोध है कि एक नई सोच,एक नई दृष्टि,एक नए विजन और मिशन को लेकर आगे बढ़ रही सम्यक पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर वंचित समाज के अधिकार और भागीदारी की लड़ाई को मजबूत करें और उसे अधिक तेज करें तथासर्वसमावेशीऔर मजबूत समाज और राष्ट्र का निर्माण करें।एक स्वस्थ लोकतांत्रिक राजनीति की शुरुआत करें,जहां राजनीति व्यवसाय नहीं है,कमाई का साधन नहीं है,जहां राजनीति एक मिशन है,एक सेवा का माध्यम है।
सद्भावनाओं सहित